दास्तान-ए-ज़िन्दगी सुनते सुनते हम सोये न थे कल रात
पास तो थे वो भी .हमेशा के हमसफ़र
आंसू हमारे चूम लिया होटों से
हँसी तो बस गयी उनकी आंखों मे
रात कब बीते सबेरा कब हुए, हम न जाने
बिन बताए चाँद और तारे गए
मस्त थे प्यार के मदिरा पिए
अब और क्या.
Sunday, October 16, 2011
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment